Red fort history in Hindi – क्या आप लाल किले की कहानियों के बारे में जानते हैं

Facts about Red fort in Hindi

Red fort की वह इमारत है जिसकी तकदीर वक्त ने मानव खुद अपने हाथों से लिखी पुराने हिंदुस्तान को आज का हिंदुस्तान बनने में जितने जमाने लगे और जो जो कहानियां घड़ी गई दिल्ली का यह लाल किला उनक गवाह बना। पिछले 4 सालों में इसी मार्क ने इतिहास को ना जाने कितनी दफा करवटें बदलते देखा इस इमारत में गुजरते दौर देखे हैं बदलते जमाने देखे हैं वह हुकुम थे जिनकी बात शायद कभी पूरे हिंदुस्तान पर थी उन हुकुम को नास्तेनाबूत होकर देखा है।

How did the Red Fort of Delhi get its name as the Red Fort?

दिल्ली के लाल किले का क्या नाम है लाल किला यह नाम किले की इन बड़ी सी लाल पत्थर से बनी बाउंड्री वॉल की वजह से पड़ा है और यह नाम शायद 19वीं सदी में अंग्रेजों के जमाने से पड़ा है। शायद वह अंग्रेजी थे जिन्होंने इसे रेड फोर्ट कहना शुरू किया था लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसके लिए का असली नाम किला यह मुबारक है यह नाम शाहजहां ने से दिया था।

Red fort history in Hindi - क्या आप लाल किले की कहानियों के बारे में जानते हैं।

Who called Delhi Shahjahanabad?

शाहजहां ने लाल किला बनवाने का तब सोचा जब उसने यह फैसला किया कि अब मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा से दिल्ली बदल दी जाए अकबर के जमाने में मुगलों की राजधानी आगरा थी। अकबर को दिल्ली इतनी पसंद नहीं थी क्योंकि दिल्ली अकबर को अपने पिता हुमायूं की शेर शाह सुरी से हुई हार याद दिला दी थी, लेकिन शाहजहां आगरा की गर्मी से परेशान थे और उसने दिल्ली वापस आने का मन बना लिया उसने तय किया कि मुगल साम्राज्य की राजधानी अब दिल्ली होनी चाहिए दिल्ली में शाहजहां ने एक शहर बसाया जिसे नाम दिया गया शाहजहानाबाद। इसे अब पुरानी दिल्ली कहा जाता है इसी शहर के बीच में भव्य लाल किले का निर्माण शुरू हुआ।

In how many days was the Red Fort completed?

1638 में शाहजहां ने लाल किला बनवाने का हुक्म दिया और पूरे 10 साल बाद 1648 में लाल किला बनकर तैयार हुआ जब लालकिला बनकर तैयार हुआ उस वक्त शाहजहां अफगानिस्तान के काबुल में थे जब उन्हें यह खबर दी गई तब बादशाह वहां से फौरन दिल्ली वापस आ गए।

How many gates did the Red Fort have?

लाल किले के दो मुख्य दरवाजे थे दिल्ली दरवाजा और लाहौरी दरवाजा। दिल्ली दरवाजे के जरिए ही शाहजहां नमाज के लिए जामा मस्जिद जाया करते थे लेकिन बाद में औरंगजेब ने लाल किले के अंदर ही अपनी बैगमो के लिए निजी मस्जिद बनवा ली, जिसे मोती मस्जिद कहा जाता है।

How did the gate of the Red Fort get its name Lahori?

दिल्ली दरवाजा तो अब आम जनता के लिए खुला नहीं है सिर्फ लाहौरी दरवाजे के जरिए ही लोग किले के अंदर जा सकते हैं लाहौरी दरवाजे का नाम लाहौर दरवाजा इसलिए पड़ा क्योंकि मुगलों के जमाने में तीन शहर ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से बड़े महत्वपूर्ण थे दिल्ली आगरा और लाहौर और इस दरवाजे का जो फ्रेंट है वह लाहौर शहर की तरफ है इसीलिए इसे लाहौरी दरवाजा कहा जाता है, इस लाहौरी दरवाजे के सामने औरंगजेब ने यह दीवार बनवा दी थी इसे घूंघट वाली दीवार कहा जाता है

लाहौरी दरवाजा चांदनी चौक के बिल्कुल सामने पड़ता है और इस दरवाजे से दीवाने आम साफ दिखाई देता था जो कि बादशाह के बैठने की जगह थी इसीलिए लोगों को बादशाह की आदत के लिहाज से चांदनी चौक पर पैदल चलना पड़ता था यह दुविधा खत्म करने के लिए और किले को और भी प्रोटेक्शन देने के लिए औरंगजेब ने लाहौरी दरवाजे के सामने यह दीवार बनवा दी थी शाहजहां को औरंगजेब की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कहा जाता है कि चांदनी चौक पर खड़े होकर अगर कोई लाल किले को देखता था तब सामने लाहोरी दरवाजा बड़ा ही सुंदर दिखाई देता था लेकिन बाद में दीवार बन जाने के बाद वह उतना पढ़ते नहीं रहा जब यह दीवार बनवाई गई उन दिनों शाहजहां आगरा में कैद थे आगरा से ही शाहजहां ने औरंगजेब को एक खत लिखा था खत में शाहजहां ने लिखा था कि बेटे दीवार बनवा कर तुमने किले की दुल्हन के चेहरे पर घूंघट डाल दिया है।

Prime Minister Pandit Nehru first hoisted the flag at the Red Fort

इसी घुंघट वाली दीवार पर खड़े होकर 15 अगस्त 1947 को प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने पहली बार आजाद भारत का तिरंगा झंडा फहराया था तब से लेकर आज तक यह सिलसिला हर साल दोहराया जाता है, लाहौरी दरवाज़े से अंदर जाते ही लाल किले का मीना बाजार शुरू हो जाता है इसे छत्ता बाजार भी कहते हैं यह बाजार शाहजहां ने अपनी बहनों के लिए बनवाया था किले में जिन चीजों का इस्तेमाल होता था उस तरह का सामान इस बाजार में मिलता था,

एक जमाना था जब अरब और भारत जैसे देशों से व्यापारी अपना सामान लेकर यहां आते थे जिसे वह बादशाह की देख लो और शहर जातियों को बेचते थे अच्छी बात यह है कि यह बाजार कई सौ साल बाद आज भी अपनी उन्हीं रंगीनियों के साथ जिंदा है और आज भी लोग यहां से तरह तरह का साजो सामान खरीद कर ले जाते हैं, छत्ता बाजार खत्म होते ही सामने दिखाई पड़ता है नौबत खाना नौबत खाने की ऊपरी मंजिल पर म्यूजिशियंस बैठे थे और यहां दिन में 5 बार नोबत बजती थी अलग-अलग वक्त को बस लाने के लिए।

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